जाति,धर्म, धन दौलत प्रभु राम को नहीं प्यारे हैं
जिनके ह्रदय प्रभु भक्ति, प्रेम बसे
रघुकुल नन्दन वहीं पधारें हैं
रावण का वध करना होता
खुद राम नहीं वन को जाते
लक्ष्मण ही समर्थ थे
वो ही संहार कर आते
भक्तों की इच्छा और मुक्ति के खातिर
स्वयं आप ही वन को चुना
सबरी,अहिल्या ,बाली,मंदोदरी
न जानें कितनों की मुक्ति का ताना बाना बुना
मारे सारे असुर निशाचर
जन जन को भय मुक्त किया
मित्रता निभाई सुग्रीव से
भाई से भाई को भय मुक्त किया
तोड़ अभिमान सागर का
अपनी प्रभुता दिखलाई
सागर से भी बड़ा प्रण है
ये सीख मनुष्य को बतलाई
सौ योजन के सिन्धु में भी
पाषाणों को भी तैराया है
कल्पना से भी था जो परे
उसको करके दिखलाया है
सत्य और धर्म की स्थापना के निमित्त
लंकेश का वध कर डाला है
लालसा नहीं थी राजस्व या सोने की लंका की
धर्म ध्वजा फहरानी थी
असत्य को परास्त कर जग में
सत्य की डंका बजानी थी
राज धर्म की खातिर
अति प्रिय सीता का त्याग किया
खुद आप हलाहल पी बैठे
पर कर्तव्यों का निर्वाह किया
राजधर्म,पुत्रधर्म, पत्नीधर्म
हर धर्मों का पालन करते हुए
आदर्श पुरूष के जीवन को चरित्रार्थ किया
मानव के उत्तम चरित्र और जीवन की
हर सीख ही" रामायण" है
सबसे सुन्दर,सुखदायी गंगा सी जो पावन है
जय श्रीराम
-रामजी तिवारी
©Ramji Tiwari
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