Ramji Tiwari

Ramji Tiwari

मेरी वजह से कभी किसी का दिल ना दुखे न किसी का अहित हो बस मेरे जीवन की यही प्राथमिकता है

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#कविता #alonestory #sadquotes #alonelove #sadpoem  White 

        *दिल में बसाना नहीं चाहता* 

किसी से दिल अपना लगाना नहीं चाहता
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

इस मुहब्बत ने बहुत ही रूलाया है हमें
कई दर्द ए गम देकर सताया है हमें 
अब प्यार की पैंगे बढ़ाना नहीं चाहता
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

अपना कहते हैं पर अपना समझते नहीं 
मिलन की फरियाद जो कभी भी करते नहीं 
ऐसे लोगों के घर जाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

खुद को समझते हैं खुदा वो समझते रहें 
अपनी अमीरी रुतबे का दम भरते रहें 
अभिमानी से रिश्ता निभाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

मुहब्बत करके बस दिल को जलाते हैं वो 
अपनी आदतों से कब बाज आते हैं वो 
मैं बार- बार धोखा खाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

हमें प्यार करके कई सारे गम मिले हैं 
हमें चाहनें वाले बहुत ही कम मिले हैं 
बुझी हुई आग फिर जलाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता 

सुकून की तलाश में दर- दर भटकता रहा
भला बनकर भी दिलों में मैं खटकता रहा
विरह में फिर आँसू बहाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

वादा करते हैं मगर कभी  निभाते नहीं 
अपनी बात से मुकर कर भी लजाते नहीं 
झूठ- मूठ के रिश्ते बनाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

झूठे रिश्तों से मैं तन्हा- अकेला ही सही
जहर जैसे प्रेम से तो करेला ही सही
आँसुओं से दामन भिगाना नहीं चाहता 
किसी को भी दिल में बसाना नहीं चाहता

         -स्वरचित मौलिक रचना-राम जी तिवारी "राम"
                                           उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari
#जयश्रीराधेकृष्ण #वृन्दावनधामका  

        *दिवाना खाटूश्याम का*

मैं हो गया हूँ दिवाना खाटूश्याम का 
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

दर्शन के बिना एक पल भी चैन नहीं है
बिना श्याम पुकारे कटती रैन नहीं है
कान्हा के सिवा कोई न मेरे काम का
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

भटक रहा हूं दर दर दिखे नहीं कन्हाई
कोई पता बता दो दे रहा हूं दुहाई 
कहांँ मिलेगा घर मनमोहन घनश्याम का
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

चलते चलते पैरों से रक्त लगा बहनें
मिल के रहूंगा चाहे अद्याय पड़ें सहनें
 नहीं भय है मुझको अब किसी भी परिणाम का
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

सुना वृन्दावन रहते हैं मेरे कृपालू
सब पर दया करते हैं मधुसूदन दयालू
मैं हो गया पुजारी कान्हा के नाम का
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

कृष्ण के दरबार में अर्जी हमें लगानी
दया के सागर को व्यथा अपनी सुनानी
समाधान मिल जाएगा उलझन तमाम का
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

हमको मनमोहन की सेवा में रहना है
वृन्दावन रहकर राधे- राधे कहना है
कौन ग्राम पड़ेगा मेरे श्री सुखधाम का
कोई मार्ग बता दो वृन्दावन धाम का

       - स्वरचित मौलिक रचना-राम जी    तिवारी"राम"
                    उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

©Ramji Tiwari
 तेरे नैना मधु के प्याले
चितवन कटीली डोरे डाले
जब लहराती खुली जुल्फों को
गगन में छाते बादल काले

©Ramji Tiwari

#love

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वेदना के स्वरों को साज देता हूँ मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ अपना हो या पराया या कोई किस्मत का मारा हर किसी का दर्द मैं बाँट लेता हूँ वेदना के स्वरों को साज देता हूँ मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ जो हो किसी का सताया अपने से ही हो धोखा खाया बिन कहे हर बात को मैं जान लेता हूँ वेदना के स्वरों को साज देता हूँ मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ दर्द वो जो कह न पायें मन ही मन में कसमसायें बिन कहे तड़पकर रह जायें उनके दिल की हर तड़प हर बात कहता हूँ वेदना के स्वरों को साज देता हूँ मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ कोई रो रहा किसी के वियोग में कोई याद में आंसू बहा रहा है कोई प्यार में धोखा खाकर मन ही मन पछता रहा है उनके जज्बातों,भावनाओं को पढ़कर हर एक मन की बात लिखता हूँ वेदना के स्वरों को साज देता हूँ मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ चाहते थे जो संग जीना ,संग मरना मानकर घरवालों का कहना त्याग कर अपनी खुशी को मजबूरीवश एकदूजे से दूर रहते हैं टूटा उनका हर एक ख्वाब लिखता हूँ वेदना के स्वरों को साज देता हूँ मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ -रामजी तिवारी ©Ramji Tiwari

#lonely  वेदना के स्वरों को साज देता हूँ 
मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ 
अपना हो या पराया या कोई किस्मत का मारा 
 हर किसी का दर्द मैं बाँट लेता हूँ
वेदना के स्वरों को साज देता हूँ
मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ 
जो हो किसी का सताया 
अपने से ही हो धोखा खाया 
बिन कहे हर बात को मैं जान लेता हूँ 
वेदना के स्वरों को साज देता हूँ 
मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ 
दर्द वो जो कह न पायें 
मन ही मन में कसमसायें 
बिन कहे तड़पकर रह जायें 
उनके दिल की हर तड़प हर बात कहता हूँ 
वेदना के स्वरों को साज देता हूँ 
मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ 
कोई रो रहा किसी के वियोग में 
कोई याद में आंसू बहा रहा है 
कोई प्यार में धोखा खाकर 
मन ही मन पछता रहा है
उनके जज्बातों,भावनाओं को पढ़कर 
हर एक मन की बात लिखता हूँ 
वेदना के स्वरों को साज देता हूँ 
मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ 
चाहते थे जो संग जीना ,संग मरना 
मानकर घरवालों का कहना 
त्याग कर अपनी खुशी को 
मजबूरीवश एकदूजे से दूर रहते हैं
टूटा उनका हर एक ख्वाब लिखता हूँ 
वेदना के स्वरों को साज देता हूँ 
मैं विरह की वेदना को आवाज देता हूँ 

-रामजी तिवारी

©Ramji Tiwari

#lonely

11 Love

जाति,धर्म, धन दौलत प्रभु राम को नहीं प्यारे हैं जिनके ह्रदय प्रभु भक्ति, प्रेम बसे रघुकुल नन्दन वहीं पधारें हैं रावण का वध करना होता खुद राम नहीं वन को जाते लक्ष्मण ही समर्थ थे वो ही संहार कर आते भक्तों की इच्छा और मुक्ति के खातिर स्वयं आप ही वन को चुना सबरी,अहिल्या ,बाली,मंदोदरी न जानें कितनों की मुक्ति का ताना बाना बुना मारे सारे असुर निशाचर जन जन को भय मुक्त किया मित्रता निभाई सुग्रीव से भाई से भाई को भय मुक्त किया तोड़ अभिमान सागर का अपनी प्रभुता दिखलाई सागर से भी बड़ा प्रण है ये सीख मनुष्य को बतलाई सौ योजन के सिन्धु में भी पाषाणों को भी तैराया है कल्पना से भी था जो परे उसको करके दिखलाया है सत्य और धर्म की स्थापना के निमित्त लंकेश का वध कर डाला है लालसा नहीं थी राजस्व या सोने की लंका की धर्म ध्वजा फहरानी थी असत्य को परास्त कर जग में सत्य की डंका बजानी थी राज धर्म की खातिर अति प्रिय सीता का त्याग किया खुद आप हलाहल पी बैठे पर कर्तव्यों का निर्वाह किया राजधर्म,पुत्रधर्म, पत्नीधर्म हर धर्मों का पालन करते हुए आदर्श पुरूष के जीवन को चरित्रार्थ किया मानव के उत्तम चरित्र और जीवन की हर सीख ही" रामायण" है सबसे सुन्दर,सुखदायी गंगा सी जो पावन है जय श्रीराम -रामजी तिवारी ©Ramji Tiwari

#जयश्रीराम #Devotional #historical #motivate  जाति,धर्म, धन दौलत प्रभु राम को नहीं प्यारे हैं 
जिनके ह्रदय प्रभु भक्ति,  प्रेम बसे 
रघुकुल नन्दन वहीं पधारें हैं 
रावण का वध करना होता
 खुद राम नहीं वन को जाते 
लक्ष्मण ही समर्थ थे
 वो ही संहार कर आते 
भक्तों की इच्छा और मुक्ति के खातिर 
स्वयं आप ही वन को चुना 
सबरी,अहिल्या ,बाली,मंदोदरी
 न जानें कितनों की मुक्ति का ताना बाना बुना 
मारे सारे असुर निशाचर 
जन जन को भय मुक्त किया 
मित्रता निभाई सुग्रीव से 
भाई से भाई को भय मुक्त किया 
तोड़ अभिमान सागर का
 अपनी प्रभुता दिखलाई 
सागर से भी बड़ा  प्रण है
 ये सीख मनुष्य को बतलाई 
सौ योजन के सिन्धु में भी
 पाषाणों को भी तैराया है 
कल्पना से भी था जो परे
 उसको करके दिखलाया है 
सत्य और धर्म की स्थापना के निमित्त
 लंकेश का वध कर डाला है 
लालसा नहीं  थी राजस्व या सोने की लंका की 
धर्म ध्वजा फहरानी थी
असत्य को परास्त कर जग में  
सत्य की डंका बजानी थी 
राज धर्म की खातिर 
अति प्रिय सीता का त्याग किया
खुद आप हलाहल पी बैठे
 पर कर्तव्यों का निर्वाह किया 
राजधर्म,पुत्रधर्म, पत्नीधर्म
 हर धर्मों का पालन करते हुए 
आदर्श पुरूष के जीवन को चरित्रार्थ किया 
मानव के उत्तम चरित्र और जीवन की 
हर सीख ही" रामायण" है 
सबसे सुन्दर,सुखदायी गंगा सी जो पावन है 
                जय श्रीराम 

-रामजी तिवारी

©Ramji Tiwari

दीपावली थी आने वाली घर की चल रही थी साफ सफाई सब कमरे हो चुके थे साफ अब अन्तिम कमरे की थी बारी सीढी से ऊपर जाकर ज्यों ही कमरे का दरवाजा खोला देखकर उसकी अस्तव्यस्त दशा को घबड़ा कर मेरा मन भी डोला कागज के पुर्जों और तस्वीरों से कमरा पूरा पटा पडा था मेरे ठीक सामने ही एक लिफाफा फटा पड़ा था झुककर जैसे ही मैनें उसे उठाया उससे गिरकर एक तस्वीर मेरी आँखों के सामनें आया भूल चुका था जिन यादों को वो यादें फिर से उभर आईं तस्वीर में मुझको मेरी अनारकली नजर जब आई सहसा ही यादों के पन्ने सारे पलट चुके थे पानी की बूँदों की माफिक आँखों से आँसू टपक गए थे मैं उसकी यादों में खोया गुमसुम ऐसे बैठा था मानो हो वो पास में मेरे मैं संग उसके बैठा था मीठे मधुर कर्ण प्रिय स्वर उसके कानों में खनक रहे थे पायल की रूनझुन ध्वनि से दोनों के मन चहक रहे थे खुले केशुओं की छाया में मन था मेरा विश्राम कर रहा आँखों ही आँखों में मैं प्यार के था छन्द पढ़ रहा सहसा ही कानों में मेरे जोरों की आवाज एक आई क्यों बुत बनकर बैठे हो क्या हो गई पूरी साफ सफाई -रामजी तिवारी ©Ramji Tiwari

#यादें #Feeling #fantasy  दीपावली थी आने वाली घर की चल रही थी साफ सफाई 
सब कमरे हो चुके थे साफ अब अन्तिम कमरे की थी बारी 
सीढी से ऊपर जाकर ज्यों ही कमरे का दरवाजा खोला 
देखकर उसकी अस्तव्यस्त दशा को घबड़ा कर मेरा मन भी डोला 
कागज के पुर्जों और तस्वीरों से कमरा पूरा पटा पडा था 
मेरे ठीक सामने ही एक लिफाफा फटा पड़ा था 
झुककर जैसे ही मैनें उसे उठाया
 उससे गिरकर एक तस्वीर मेरी आँखों के सामनें आया 
भूल चुका था जिन यादों को वो यादें फिर से उभर आईं
तस्वीर में मुझको मेरी अनारकली नजर जब आई 
सहसा ही यादों के पन्ने सारे पलट चुके थे
पानी की बूँदों की माफिक आँखों से आँसू टपक गए थे 
मैं उसकी यादों में खोया गुमसुम ऐसे बैठा था 
मानो हो वो पास में मेरे मैं संग उसके बैठा था 
मीठे मधुर कर्ण प्रिय स्वर उसके कानों में खनक रहे थे 
पायल की रूनझुन ध्वनि से दोनों के मन चहक रहे थे 
खुले केशुओं की छाया में मन था मेरा विश्राम कर रहा 
आँखों ही आँखों में मैं प्यार के था छन्द पढ़ रहा 
सहसा ही कानों में मेरे जोरों की आवाज एक आई 
क्यों बुत बनकर बैठे हो क्या हो गई पूरी साफ सफाई

      -रामजी तिवारी

©Ramji Tiwari
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