ऋतुराज पपनै

ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

स्वयं की निर्मित छंद हूँ मैं। ऋतुराज हूँ मैं बसंत हूँ मैं।।

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आ भी जा बरखा,न दिखा इतने तेवर। देख तेरी राह तक रहे,तेरी दीदी के देवर।। 😂😂 Barish 🌧️ the season of love ❤️ ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#बरखा #rain  आ भी जा बरखा,न दिखा इतने तेवर।
देख तेरी राह तक रहे,तेरी दीदी के देवर।।
😂😂
Barish 🌧️ the season of love ❤️

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

जुल्फ़ झटक ली मेघा ने,बूँंद गिरी बरसात हुई। बरसों से वो रुठी थी,आज ही उससे बात हुई।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#बारिश #Summer_Rain #rain  जुल्फ़ झटक ली मेघा ने,बूँंद गिरी बरसात हुई।
बरसों से वो रुठी थी,आज ही उससे बात हुई।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

कान्हा तेरे प्रीत को तरसी,भयी बाँवरी पीर। प्रीत जुरी मैं माला सी,और टुटी तो जंजीर।। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#Krishna_ji #Meerabai #meeraji #Bhakti  कान्हा तेरे प्रीत को तरसी,भयी बाँवरी पीर।
प्रीत जुरी मैं माला सी,और टुटी तो जंजीर।।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

Dil ✍️इश्क-ए-चुनाव..19 April हम इश्क में बेरोजगार हैं साहिब। हमें दिल❤️ का बटन दबाना है। तुम पालोगे नफ़रत साहिब, हमें उनसे प्यार निभाना है।😅 ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#19April #लव  Dil  ✍️इश्क-ए-चुनाव..19 April 

हम इश्क में बेरोजगार हैं साहिब।
हमें दिल❤️ का बटन दबाना है।
तुम पालोगे नफ़रत साहिब,
हमें उनसे प्यार निभाना है।😅

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

❤️ इश्क़-ए-चुनाव #19April

12 Love

India quotes अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान ने दी है वरन समाज ने सदैव गूंगा ही देखना चाहा है। कभी रिश्तों का बंधन जब अपने से छोटों पर बातों का बोझ थोपा जाए,कभी उम्र का अन्तर जहाँ बड़प्पन का फ़ायदा उठाया जाए,कहीं अंग्रेजी मानसिकता युक्त जमींदारी/मनसबदारी प्रथा जिसमें समाज के कुछ लोगों द्वारा स्वयं को श्रेष्ठ दिखाया जाए अन्य सिर्फ मूकदर्शक बनकर देखते रह जाए,कहीं जातिवाद के साँचे में ढ़ालकर समाज के लोगों को निम्न और उच्च वर्ग में बाँट दिया जाए। होता न जो संविधान कैसे समाज का एकीकरण होता?होता न जो संविधान कैसे समानताओं का गठन होता ? होता न जो संविधान कैसे स्त्री और पुरुष में विभेद दूर होता? कैसे महिला सशक्तिकरण होता। ✍️संविधान दिवस,26 नवम्बर 1949 ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

#भारतीय_संविधान_दिवस #ConstitutionDay2023 #समाज  India quotes  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान ने दी है वरन समाज ने सदैव गूंगा ही देखना चाहा है।
कभी रिश्तों का बंधन जब अपने से छोटों पर बातों का बोझ थोपा जाए,कभी उम्र का अन्तर जहाँ बड़प्पन का फ़ायदा उठाया जाए,कहीं अंग्रेजी मानसिकता युक्त जमींदारी/मनसबदारी प्रथा जिसमें समाज के कुछ लोगों द्वारा स्वयं को श्रेष्ठ दिखाया जाए अन्य सिर्फ मूकदर्शक बनकर देखते रह जाए,कहीं जातिवाद के साँचे में ढ़ालकर समाज के लोगों को निम्न और उच्च वर्ग में बाँट दिया जाए।
होता न जो संविधान कैसे समाज का एकीकरण होता?होता न जो संविधान कैसे समानताओं का गठन होता ?
होता न जो संविधान कैसे स्त्री और पुरुष में विभेद दूर होता?
कैसे महिला सशक्तिकरण होता।
✍️संविधान दिवस,26 नवम्बर 1949

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"
#चित्त_परिचित_शिव #ऋतुराज_पपनै #विचार #mahashivratri  (चित्त परिचित शिव)

आदि हैं अनन्त हैं शिव,
एकाग्र,ध्यान,बैराग हैं।
चित्त परिचित हैं शिव मेरे।
मेरी भक्ति के अनुराग हैं।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"
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