Prakash Shukla

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जिला- फतेहपुर AT मेरे अल्फ़ाज़ ही मेरी पहचान

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एक पति बेचारा अपनी बेगुनाही कैसे शाबित करता है पत्नी आज दिन भर कहाँ थे पति यहीं तो था पत्नी यहां कहाँ ? बस यहीं तो था पत्नी यहीं थे कि गुलछर्रे उडा रहे थे पति हे भाग्यवान अच्छा तो अब मुझसे बहाने न बनाओ सच सच बताओ पति तुम ऐसे ही शक करोगी तो मै खा लूँगा पत्नी हाँ खा लो जहर कम से कम निपट तो जाओगे पति हट पगली जहर खाएँ मेरे दुश्मन मैं तो तुम्हारी कसम खाने की बात कर रहा था ☺️☺️☺️☺️ ©Prakash Shukla

#कॉमेडी #OneSeason  एक पति बेचारा अपनी बेगुनाही कैसे शाबित करता है
पत्नी आज दिन भर कहाँ थे
पति यहीं तो था
पत्नी यहां कहाँ ?
बस यहीं तो था
पत्नी यहीं थे कि गुलछर्रे उडा रहे थे
पति हे भाग्यवान
अच्छा तो अब मुझसे बहाने न बनाओ सच सच बताओ
पति तुम ऐसे ही शक करोगी तो मै खा लूँगा
पत्नी हाँ खा लो जहर कम से कम निपट तो जाओगे
पति हट पगली जहर खाएँ मेरे दुश्मन
मैं तो तुम्हारी कसम खाने की बात कर रहा था
☺️☺️☺️☺️

©Prakash Shukla

love #OneSeason

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होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया मतवाले नयनो के बाण चलाकर,पिया ने किया मुझको घायल सुरमयी शब्दों से प्यार जताकर ,करके गया मुझको पागल दिल के सुरताल ,मेरे उलझे से बाल ,मुझे फूलों से उसने सजाया होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया तन और बदन मे आग लगाकर,करके गया है दिवाना बलमा ने आकर बाँहों मे भरके,किया दुनिया से मुझको बेगाना नयनों की पलक,तले एक झलक,जैसे सागर ने मोती छुपाया होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया मिलती नजर मुझसे सरमा के बोली,जिस्मों का मिलन अब है होना दिल की फुहार बोली नजरों की धार,मेरा हर एक अंग भिगोना हो जाऊँ सराबोर,मेरा बलम चितचोर,दिल के रंगों को दिल से लगाया होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया ©Prakash Shukla

#होली_की_हार्दिक_शुभकामनाएं  होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

 मतवाले नयनो के बाण चलाकर,पिया ने किया मुझको घायल
सुरमयी शब्दों से प्यार जताकर ,करके गया मुझको पागल
दिल के सुरताल ,मेरे उलझे से बाल ,मुझे फूलों से उसने सजाया

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

तन और बदन मे आग लगाकर,करके गया है दिवाना
बलमा ने आकर बाँहों मे भरके,किया दुनिया से मुझको बेगाना
 नयनों की पलक,तले एक झलक,जैसे सागर ने मोती छुपाया

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

मिलती नजर मुझसे सरमा के बोली,जिस्मों का मिलन अब है होना
दिल की फुहार बोली नजरों की धार,मेरा हर एक अंग भिगोना
हो जाऊँ सराबोर,मेरा बलम चितचोर,दिल के रंगों को दिल से लगाया

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

©Prakash Shukla

डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन डूब गए हैं लोग यहाँ के डूब गया बचपन छूट गए हैं कोरे पन्ने बचपन के वो खेल छूट गए हैं खेल तमाशे बचपन की वो रेल रूठ गई है प्यारी गुडि़या रूठ गए सब मेल रूठ के देखो बनी शिकहरी जंगल की इक बेल सूने सूने से हो गए हैं मेरे हरे भरे उपवन डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन टूटी चप्पल के पहिए और डिब्बों की गाडी़ छूट गए सब रिश्ते बारिश में भीगती बाडी़ चार आने में मिलता सब गुडि़या गुड्डे की साडी़ पैसों मे बिकता चाट-साट चूरन से बनती डाढी़ छूट गईं बारिश की बूँदें टूट चुका है तन डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन

#DryTree  डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन
डूब गए हैं लोग यहाँ के डूब गया बचपन

छूट गए हैं कोरे पन्ने बचपन के वो खेल
छूट गए हैं खेल तमाशे बचपन की वो रेल
रूठ गई है प्यारी गुडि़या रूठ गए सब मेल
रूठ के देखो बनी शिकहरी जंगल की इक बेल
सूने सूने से हो गए हैं मेरे हरे भरे उपवन
डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन

टूटी चप्पल के पहिए और डिब्बों की गाडी़
छूट गए सब रिश्ते बारिश में भीगती बाडी़
चार आने में मिलता सब गुडि़या गुड्डे की साडी़
पैसों मे बिकता चाट-साट चूरन से बनती डाढी़
छूट गईं बारिश की बूँदें टूट चुका है तन
डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन

#DryTree

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तुम ठहरी परदेशी मैम एक दफा देखा उनको आँखों में न नींद रही.................(धीरे आवाज) एक दफा देखा उनको आँखों में न नींद रही.............(.जोर) एक दफा देखा उनको आँखों में न नींद रही.............(.बहुत जोर) साँसें मेरी साथ छोड़कर पलकें मेरी मूँद रहीं............(.बहुत जोर) क्या था अपनापन बेगाना सीने में ही दबा रहा...........जोर दिल भी खाली लेन देन के सौदे में ही लगा रहा..............धीरे था बेगानापन अपना ही हाथों में अस्क की बूँद रही.............बहुत जोर साँसें मेरी साथ छोड़कर पलकें मेरी मूँद रहीं.................धीरे तुम ठहरी परदेशी मैम मैं गाँव का था एक छोरा.............जोर कोशिश की पर दिल न माना बीच धार में बोरा..................धीरे टूटा दिल मोतियन की माला एक एक कर रूँध रही.............बहुत जोर साँसें मेरी साथ छोड़कर पलकें मेरी मूँद रहीं.................धीरे

 तुम ठहरी परदेशी मैम

एक दफा देखा उनको 
आँखों में न नींद रही.................(धीरे आवाज)
एक दफा देखा उनको 
आँखों में न नींद रही.............(.जोर)
एक दफा देखा उनको 
आँखों में न नींद रही.............(.बहुत जोर)
साँसें मेरी साथ छोड़कर
पलकें मेरी मूँद रहीं............(.बहुत जोर)

क्या था अपनापन बेगाना
सीने में ही दबा रहा...........जोर
दिल भी खाली लेन देन के
सौदे में ही लगा रहा..............धीरे
था बेगानापन अपना ही
हाथों में अस्क की बूँद रही.............बहुत जोर
साँसें मेरी साथ छोड़कर
पलकें मेरी मूँद रहीं.................धीरे

तुम ठहरी परदेशी मैम
मैं गाँव का था एक छोरा.............जोर
कोशिश की पर दिल न माना
बीच धार में बोरा..................धीरे
टूटा दिल मोतियन की माला
एक एक कर रूँध रही.............बहुत जोर
साँसें मेरी साथ छोड़कर
पलकें मेरी मूँद रहीं.................धीरे

तुम ठहरी परदेशी मैम

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"मैं और मेरी तन्हाई"सोलहवाॅ भाग जब बस रुकी तो हम सब उतर गए और हमने फ्रेश होकर भोजन करने को बैठ गए तभी पास में बैठे शिक्षक बातें कर रहे थे कि एक लड़के की जिम्मेदारी स्वयं प्रिन्सिपल मैडम ने ली है और उसका पूरा खर्च भी वे ही उठा रही हैं यह सुनकर मै मीनाक्षी मैडम का आजीवन आभारी बन गया था                         मैंने और शीतल ने खाना खाया और बस में बैठ गए और अब मेरे मन में उठ रहे सभी प्रश्नों का जवाब मुझे मिल चुका था अब टूर में जाने वहाॅ घूमने का आनन्द उठाना चाहता था हम सभी ने बस में बैठकर अंत्याक्षरी खेली और आज मेरी बारी थी शीतल को परेशान करने की मैने मौका देखकर शीतल के बैग से कपडे़ निकालकर उसकी सहेली के बैग में डाल दिए और उसकी सहेली के कपडे़ उसके बैग में डाल दिए थे उधर शाम होते होते हमारी बस हरिद्वार पहुँच चुकी थी हम सब इतने थक चुके थे कि हम सबने अपने अपने कमरे को तलाश लिया और तुरन्त सो गए अगली सुबह एक नई सुबह एक नई जगह घूमना और अभी शीतल के साथ जो होने वाला था उसका फूला हुआ चेहरा और फूली हुई नाक भी देखना बाकी था फिर                                      *प्रकाश*

 "मैं और मेरी तन्हाई"सोलहवाॅ भाग
जब बस रुकी तो हम सब उतर गए और हमने फ्रेश होकर भोजन करने को बैठ गए तभी पास में बैठे शिक्षक बातें कर रहे थे कि एक लड़के की जिम्मेदारी स्वयं प्रिन्सिपल मैडम ने ली है और उसका पूरा खर्च भी वे ही उठा रही हैं यह सुनकर मै मीनाक्षी मैडम का आजीवन आभारी बन गया था
                        मैंने और शीतल ने खाना खाया और बस में बैठ गए और अब मेरे मन में उठ रहे सभी प्रश्नों का जवाब मुझे मिल चुका था अब टूर में जाने वहाॅ घूमने का आनन्द उठाना चाहता था हम सभी ने बस में बैठकर अंत्याक्षरी खेली और आज मेरी बारी थी शीतल को परेशान करने की मैने मौका देखकर शीतल के बैग से कपडे़ निकालकर उसकी सहेली के बैग में डाल दिए और उसकी सहेली के कपडे़ उसके बैग में डाल दिए थे उधर शाम होते होते हमारी बस हरिद्वार पहुँच चुकी थी हम सब इतने थक चुके थे कि हम सबने अपने अपने कमरे को तलाश लिया और तुरन्त सो गए अगली सुबह एक नई सुबह एक नई जगह घूमना और अभी शीतल के साथ जो होने वाला था उसका फूला हुआ चेहरा और फूली हुई नाक भी देखना बाकी था फिर
                                     *प्रकाश*

"मैं और मेरी तन्हाई"सोलहवाॅ भाग

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"मैं और मेरी तन्हाई"पन्द्रहवाँ भाग मैंने तैयारी बना ली थी टूर में जाने की पर मुझे अब ये समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे हुआ मेरा नाम टूर जाने वाली लिस्ट में कैसे आया बस मेरे घर तक आई और मैं बस में अपनी सीट पर जाकर बैठ गया हमारे साथ दस शिक्षकों की टीम भी जा रही थी तभी आगे की सीट छोड़कर शीतल मेरे पास बगल वाली सीट पर आ गई और बस सभी बच्चों को लेते हुए हरिद्वार के लिए निकल पडी़                       शीतल अपने जोक्स के पिटारे को खोले हुए थी सभी साथी खुश थे पर मैं चिंता मे डूबा हुआ था फिर उसने एक ऐसा जोक मारा मैं न चाहते हुए भी हँस पडा़ आप भी सुनना चाहेंगे वह जोक                     शीतल ने कहा-एक बार तीन आदमी ट्रेन से जा रहे थे उन तीनों ने एक साइड की तीनों बर्थ बुक कराई हुई थीं तीनो रात में जब सो रहे थे तो जो सबसे ऊपर वाली बर्थ में लेटा था उसके पेट में गैस बनी थी वह भी बहुत जोर की वह उठ कर बाहर नहीं जाना चाहता था तो उसने क्या किया कि गैस छोडी़ तेज आवाज के साथ और साथ साथ बोला बादल बहुत तेज गरज रहे हैं                            इसे सुनते ही जो हँसी छूटी वह रुक नहीं रही थी इस हँसी में मैं थोडी़ देर के लिए अपनी सारी चिंताएँ भूल गया था तभी आगे जाकर हमारी बस एक ढाबे में रुकी और फिर                                       *प्रकाश*                       

 "मैं और मेरी तन्हाई"पन्द्रहवाँ भाग
मैंने तैयारी बना ली थी टूर में जाने की पर मुझे अब ये समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे हुआ मेरा नाम टूर जाने वाली लिस्ट में कैसे आया बस मेरे घर तक आई और मैं बस में अपनी सीट पर जाकर बैठ गया हमारे साथ दस शिक्षकों की टीम भी जा रही थी तभी आगे की सीट छोड़कर शीतल मेरे पास बगल वाली सीट पर आ गई और बस सभी बच्चों को लेते हुए हरिद्वार के लिए निकल पडी़
                      शीतल अपने जोक्स के पिटारे को खोले हुए थी सभी साथी खुश थे पर मैं चिंता मे डूबा हुआ था फिर उसने एक ऐसा जोक मारा मैं न चाहते हुए भी हँस पडा़ आप भी सुनना चाहेंगे वह जोक
                    शीतल ने कहा-एक बार तीन आदमी ट्रेन से जा रहे थे उन तीनों ने एक साइड की तीनों बर्थ बुक कराई हुई थीं तीनो रात में जब सो रहे थे तो जो सबसे ऊपर वाली बर्थ में लेटा था उसके पेट में गैस बनी थी वह भी बहुत जोर की वह उठ कर बाहर नहीं जाना चाहता था तो उसने क्या किया कि गैस छोडी़ तेज आवाज के साथ और साथ साथ बोला बादल बहुत तेज गरज रहे हैं
                           इसे सुनते ही जो हँसी छूटी वह रुक नहीं रही थी इस हँसी में मैं थोडी़ देर के लिए अपनी सारी चिंताएँ भूल गया था तभी आगे जाकर हमारी बस एक ढाबे में रुकी और फिर
                                      *प्रकाश*
                      

"मैं और मेरी तन्हाई"पन्द्रहवाँ भाग

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