पारूल चौधरी

पारूल चौधरी Lives in Bhander, Madhya Pradesh, India

Writer, Poetess

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जब कभी माँ की, किसी सीधी सी बात पर, किसी को टेड़ा जवाब देते हुए सुनती थी, तो वजह ढूंढती थी, माँ की खामोशियों की।। और आज अपनी खामोशी की वजह ढूँढती हूँ।। ©पारूल चौधरी

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किसी को टेड़ा जवाब देते हुए सुनती थी, 
तो वजह ढूंढती थी, माँ की खामोशियों की।।
और आज अपनी खामोशी की वजह ढूँढती हूँ।।

©पारूल चौधरी

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8 Love

हम सब में एक शिक्षक है, सार ये है कि - हम किससे क्या सीखते हैं, और किसे क्या सिखाते हैं। #paruldiaries ©पारूल चौधरी

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©पारूल चौधरी

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10 Love

क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।। जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।। (read full poem in caption) ©पारूल चौधरी

#SushantSinghRajput #कविता #paruldiaries  क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।।
जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। 

और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।।

(read full poem in caption)

©पारूल चौधरी

एक हादसा ही तो था, फिर उस पर इतना बवाल क्यों ? जो खामोशी से चला गया, उसकी मौत पर कोई सवाल क्यों ? क्यों फर्क पड़े हमें कि, उसको क्या-क्या खला होगा ? यूँ हवा में झूलने से पहले,

8 Love

ज़िन्दगी न सही, जिंदगी का एक हिस्सा तो रहने देते। पूरी कहानी ना सही, इसका कोई किस्सा तो कहने देते।। एक दूजे तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद हो भी जाएं अगर, खबर ख़ैरियत की मिलती रहे, कम से कम इतना रिश्ता तो रहने देते।। ©पारूल चौधरी

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पूरी कहानी ना सही, इसका कोई किस्सा तो कहने देते।।
एक दूजे तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद हो भी जाएं अगर,
खबर ख़ैरियत की मिलती रहे, कम से कम इतना रिश्ता तो रहने देते।।

©पारूल चौधरी

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8 Love

चाह नहीं मुझे, मैं संगीत मधुर बजाऊँ, बस तेरे होठों पर जो धरी जाए, वो बंसी कान्हा बन जाऊँ।। चाह नहीं मुझे, हर बसंत नाचूँ और सबको रिझाऊँ, बस तेरे मुकुट पर जो बिराजे वो मोर पंख बन जाऊँ।। चाह नहीं मुझे, मैं खुशबू जग में फैलाऊँ, बस तेरे माथे का टीका हो जो वो चंदन पावन हो जाऊँ।। चाह नहीं मुझे, किसी सुंदर काया पर ओढ़ी जाऊँ, बस तेरे तन लगे जो, वो पीला पीतांबर बन जाऊँ।। चाह नहीं मुझे, राधा रुकमणी सा हक पाऊँ, बस तेरी निर्मल दृष्टि पड़े जिस पर वो मीरा दीवानी कहलाऊँ।।। ✍️ पारुल चौधरी

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बस तेरे होठों पर जो धरी जाए,
वो बंसी कान्हा बन जाऊँ।।

चाह नहीं मुझे, हर बसंत नाचूँ और सबको रिझाऊँ,
बस तेरे मुकुट पर जो बिराजे
वो मोर पंख बन जाऊँ।।

चाह नहीं मुझे, मैं खुशबू जग में फैलाऊँ,
बस तेरे माथे का टीका हो जो
वो चंदन पावन हो जाऊँ।।

चाह नहीं मुझे, किसी सुंदर काया पर ओढ़ी जाऊँ,
बस तेरे तन लगे जो,
वो पीला पीतांबर बन जाऊँ।।

चाह नहीं मुझे, राधा रुकमणी सा हक पाऊँ,
बस तेरी निर्मल दृष्टि पड़े जिस पर
वो मीरा दीवानी कहलाऊँ।।।       ✍️ पारुल चौधरी

काबिल ऐ तारीफ़ है वक़्त की तासीर, कितना भी बुरा हो, गुज़र ही जाता है।।

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कितना भी बुरा हो, गुज़र ही जाता है।।
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