White हाँ शायद मैं ही गलत हूँ, मेरी बहुत काल्पनिक आशा रही.....!
बस मैंने चाहा ज़ब भी मैं कुछ कहूँ तुम समझो मेरी बात
मैं चाहती थी तुमसे तुम्हारा वक़्त जो सबमे कही बंट चुका हैं
मेरे हिस्से में आया बस इंतज़ार,
मैंने चाहा ज़ब भी कोई शिकायत हो मुझे तुमसे
तुम सामने से बात करके सब ठीक करदो,
मैने चाहा तुम भी कभी प्यार जता दो
मैंने चाहा की परवाह हो तुझे मेरी,
अब कहने को कोई हर्फ़ नहीं रहें पास भी
मैंने आईने में देखा अपने अक्स को
कुछ टूट चुका हैं अंदर, कुछ हैं जो रह गया अंदर ही
जो कह नहीं पाई, समझा नहीं पाई
मेरे कुछ बोलने से पहले तूने ज़ब फैसला सुना दिया तब जाके
समझ आया कि मैं जो भी बोलूंगी गलत में ही हो जाऊंगी
मैंने अपनी बात ज़ाहिर करनी चाही तो तूने,
मेरे इतने सारे सवालों का जवाब बस इक अक्षर में दें दिया,
"तू ओवर रियेक्ट कर रही काश इक बार समझ लिया होता।
©nikita kothari
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