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#Emotional_Shayari #शायरी #मंजिल #सफ़र #आदि #day5  White अरे, क्या जीना ? क्या मरना ?
तेरा काम है बस, सफ़र में चलते रहना।

Day-5

©Quotes of Adi
#मंज़िल #शायरी #सफ़र #adarshnakum #आदि  सफ़र की मंज़िल मिले तबतक बेताब,
इंतज़ार में है खड़ा, दहलिज पे आफताब।

Day-3

©Quotes of Adi
#मंज़िल #विचार #सफ़र #आदि #day2  White चला जाता हूं अकेला, हरदम सफर में।
मंज़िल नहीं पता, फिरभी हम सफर में।

Day-2

©Quotes of Adi
#मंज़िल #विचार #सफ़र #आदि #day1  White एक अनजाने सफ़र में चल पड़ा हूं,
खुद के लिए खुद से लड़ पड़ा हूं।

Day 1

©Quotes of Adi
#अभिमान #कविता  अलग अलग प्रकार के व्यंजन
जो तु मंहगे-मंहगे होटलों में खाता है
हमें देखकर जो तु घिन्नाता है
उगाते है उन फसलों को
ये घिन्नौने हाथ ही
तो बता न
इन घिन्नौने हाथों पर
अभिमान क्यों न हो? 

बड़े- बडे मकानों में
जो तु आराम फर्माता है
देख हमारी झोपड़ी जो तु इसे धब्बा बताता है
बनाते हैं उन मकानों को
ये धब्बिले हाथ ही
तो बता न
इन धब्बिले हाथों पर
अभिमान क्यों न हो? 

मंहगे मंहगे कपड़े पहन
जो तु इठलाता है
देख मैले कुच्चे कपडो को हमारी
जो तु निच दृष्टि डालता है
बुनते है उन कपडो को
ये मैले कुचले हाथ ही
तो बता न
इन मैले कुचले हाथों पर
अभिमान क्यों न हो? 

तेरा पेट भरते है
तुझे स्वच्छ, स्वस्थ्य रखते हैं
महलों में बिठा तुझे , खुद झोपड़ी में रहते हैं
गाड़ी में बिठा तुझे, खुद पैदल ही चलते हैं
खुदपर अभिमान करते नहीं 
       लेकिन
तुम भी सम्मान करते नहीं

तुम्हारी नजरों में जब हमारा सम्मान नही
तो बता अभिमान क्यों नहीं?

©कलम की दुनिया

#अभिमान क्यों न हो

144 View

White हो न मुलाकात ऐसी, बेवज़ह की बात जैसी, चाँदनी सी हमसफ़र हो, पूर्णिमा के रात जैसी, हो मिलन का वक़्त लंबा, दिवस के शुरुआत जैसी, बोल कड़वे लगे सबको, हृदय पर आघात जैसी, दर्द और मुस्कान दोनों, हम-नवा दिन-रात जैसी, बिन लड़े ही हार जाना, कष्टप्रद है मात जैसी, बेबसी क्या चीज 'गुंजन', गरीबों के खाट जैसी, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #हो  White हो  न  मुलाकात ऐसी, 
बेवज़ह की बात जैसी,

चाँदनी सी हमसफ़र हो, 
पूर्णिमा  के  रात  जैसी,

हो मिलन का वक़्त लंबा, 
दिवस के शुरुआत जैसी,

बोल  कड़वे  लगे सबको, 
हृदय  पर  आघात  जैसी,

दर्द  और  मुस्कान  दोनों, 
हम-नवा  दिन-रात जैसी,

बिन  लड़े ही  हार  जाना, 
कष्टप्रद   है   मात  जैसी,

बेबसी क्या चीज 'गुंजन', 
गरीबों  के  खाट   जैसी,
  --शशि भूषण मिश्र 
      'गुंजन' चेन्नई

©Shashi Bhushan Mishra

#हो न मुलाक़ात ऐसी#

13 Love

#Emotional_Shayari #शायरी #मंजिल #सफ़र #आदि #day5  White अरे, क्या जीना ? क्या मरना ?
तेरा काम है बस, सफ़र में चलते रहना।

Day-5

©Quotes of Adi
#मंज़िल #शायरी #सफ़र #adarshnakum #आदि  सफ़र की मंज़िल मिले तबतक बेताब,
इंतज़ार में है खड़ा, दहलिज पे आफताब।

Day-3

©Quotes of Adi
#मंज़िल #विचार #सफ़र #आदि #day2  White चला जाता हूं अकेला, हरदम सफर में।
मंज़िल नहीं पता, फिरभी हम सफर में।

Day-2

©Quotes of Adi
#मंज़िल #विचार #सफ़र #आदि #day1  White एक अनजाने सफ़र में चल पड़ा हूं,
खुद के लिए खुद से लड़ पड़ा हूं।

Day 1

©Quotes of Adi
#अभिमान #कविता  अलग अलग प्रकार के व्यंजन
जो तु मंहगे-मंहगे होटलों में खाता है
हमें देखकर जो तु घिन्नाता है
उगाते है उन फसलों को
ये घिन्नौने हाथ ही
तो बता न
इन घिन्नौने हाथों पर
अभिमान क्यों न हो? 

बड़े- बडे मकानों में
जो तु आराम फर्माता है
देख हमारी झोपड़ी जो तु इसे धब्बा बताता है
बनाते हैं उन मकानों को
ये धब्बिले हाथ ही
तो बता न
इन धब्बिले हाथों पर
अभिमान क्यों न हो? 

मंहगे मंहगे कपड़े पहन
जो तु इठलाता है
देख मैले कुच्चे कपडो को हमारी
जो तु निच दृष्टि डालता है
बुनते है उन कपडो को
ये मैले कुचले हाथ ही
तो बता न
इन मैले कुचले हाथों पर
अभिमान क्यों न हो? 

तेरा पेट भरते है
तुझे स्वच्छ, स्वस्थ्य रखते हैं
महलों में बिठा तुझे , खुद झोपड़ी में रहते हैं
गाड़ी में बिठा तुझे, खुद पैदल ही चलते हैं
खुदपर अभिमान करते नहीं 
       लेकिन
तुम भी सम्मान करते नहीं

तुम्हारी नजरों में जब हमारा सम्मान नही
तो बता अभिमान क्यों नहीं?

©कलम की दुनिया

#अभिमान क्यों न हो

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White हो न मुलाकात ऐसी, बेवज़ह की बात जैसी, चाँदनी सी हमसफ़र हो, पूर्णिमा के रात जैसी, हो मिलन का वक़्त लंबा, दिवस के शुरुआत जैसी, बोल कड़वे लगे सबको, हृदय पर आघात जैसी, दर्द और मुस्कान दोनों, हम-नवा दिन-रात जैसी, बिन लड़े ही हार जाना, कष्टप्रद है मात जैसी, बेबसी क्या चीज 'गुंजन', गरीबों के खाट जैसी, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #हो  White हो  न  मुलाकात ऐसी, 
बेवज़ह की बात जैसी,

चाँदनी सी हमसफ़र हो, 
पूर्णिमा  के  रात  जैसी,

हो मिलन का वक़्त लंबा, 
दिवस के शुरुआत जैसी,

बोल  कड़वे  लगे सबको, 
हृदय  पर  आघात  जैसी,

दर्द  और  मुस्कान  दोनों, 
हम-नवा  दिन-रात जैसी,

बिन  लड़े ही  हार  जाना, 
कष्टप्रद   है   मात  जैसी,

बेबसी क्या चीज 'गुंजन', 
गरीबों  के  खाट   जैसी,
  --शशि भूषण मिश्र 
      'गुंजन' चेन्नई

©Shashi Bhushan Mishra

#हो न मुलाक़ात ऐसी#

13 Love

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