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New पशु पर कविता Status, Photo, Video

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#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#न्यूज़

बहराइच के एन एच 927 पर रूपईडीहा के पास घायल कराह रहा पशु 1962, पशु विभाग कर रहे नज़र अंदाज

126 View

#RKPrasbi #wishes

विश्व कविता दिवस पर आप सभी को समर्पित #RKPrasbi

117 View

#कविता  Village Life यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।
 मैंने बचपन से देखा है, अपनी दादी को ।
जो सुबह उठते ही मुंह धोने से पहले चारा देती हैं हमारी गाय को।
 घर के आंगन में बधे पशु जाने कैसे मेरी दादी की आहट को सुन लेते है।

दरवाजे खुलने की आवाज न जाने वह कैसे पहचान लेते हैं।
 वो भी समझ जाते हैं कि काली घनी अंधेरी रात अब जा चुकी है।
 सुबह का सूरज बस उगने वाला ही है ।
जैसे ही दादी घास की गठरी को उनके आगे फैकती है।

 वह भी झट से उठकर दादी के हाथों को चाटते हैं ।
अपनी लंबी सी जीव निकाल के कभी दादी की धोती पर 
तो कभी दादी के बालों को चाटने लगते हैं ।

शायद वह भी  दादी को प्यार करते हैं।
घास के बदले में पशु दादी को ढेर सारा प्यार देते हैं।
 अपने सुबह के चारे को देख पशु खुशी से झूम उठते हैं।

चारा खाने के बाद पशु अब कुछ पानी पीना चाहते हैं।
और वह लंबी सी जीभ को निकाल के अपने मुंह के दाएं बाएं फेरते है ।
 मेरी दादी साक्षर नहीं है, उसने कभी भी पशुओं के लिए कोई अलग सी पुस्तक नहीं पढ़ी, लेकिन वह उनकी भाषा को जानती है।

दादी समझ जाती है ,कि उसे अब प्यास लगी है ।
और फिर क्या दादी झट से एक बाल्टी भर के पानी ले आती है।
 और रख देती है गौशाला में पशुओं के आगे।
सभी झट से पानी को पीने लगते हैं ।
वह बहुत देर तक बाल्टी में सर डुबो के चुस्कियां लेते है।

 यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।
यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।।

©Negi Girl Kammu

पशु प्रेम।

90 View

#विचार  फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।

8,145 View

 में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

©Saroj Patwa

#कविता

198 View

#शायरी  ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए,
भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए।

पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई,
लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए।

बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी,
सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए।

उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं,
दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए।

थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने।
चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए।

                                   कवि-शिव गोपाल अवस्थी

©Shiv gopal awasthi

कविता

99 View

#न्यूज़

बहराइच के एन एच 927 पर रूपईडीहा के पास घायल कराह रहा पशु 1962, पशु विभाग कर रहे नज़र अंदाज

126 View

#RKPrasbi #wishes

विश्व कविता दिवस पर आप सभी को समर्पित #RKPrasbi

117 View

#कविता  Village Life यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।
 मैंने बचपन से देखा है, अपनी दादी को ।
जो सुबह उठते ही मुंह धोने से पहले चारा देती हैं हमारी गाय को।
 घर के आंगन में बधे पशु जाने कैसे मेरी दादी की आहट को सुन लेते है।

दरवाजे खुलने की आवाज न जाने वह कैसे पहचान लेते हैं।
 वो भी समझ जाते हैं कि काली घनी अंधेरी रात अब जा चुकी है।
 सुबह का सूरज बस उगने वाला ही है ।
जैसे ही दादी घास की गठरी को उनके आगे फैकती है।

 वह भी झट से उठकर दादी के हाथों को चाटते हैं ।
अपनी लंबी सी जीव निकाल के कभी दादी की धोती पर 
तो कभी दादी के बालों को चाटने लगते हैं ।

शायद वह भी  दादी को प्यार करते हैं।
घास के बदले में पशु दादी को ढेर सारा प्यार देते हैं।
 अपने सुबह के चारे को देख पशु खुशी से झूम उठते हैं।

चारा खाने के बाद पशु अब कुछ पानी पीना चाहते हैं।
और वह लंबी सी जीभ को निकाल के अपने मुंह के दाएं बाएं फेरते है ।
 मेरी दादी साक्षर नहीं है, उसने कभी भी पशुओं के लिए कोई अलग सी पुस्तक नहीं पढ़ी, लेकिन वह उनकी भाषा को जानती है।

दादी समझ जाती है ,कि उसे अब प्यास लगी है ।
और फिर क्या दादी झट से एक बाल्टी भर के पानी ले आती है।
 और रख देती है गौशाला में पशुओं के आगे।
सभी झट से पानी को पीने लगते हैं ।
वह बहुत देर तक बाल्टी में सर डुबो के चुस्कियां लेते है।

 यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।
यूं ही नहीं परवान चढ़ा यह पशु प्रेम।।

©Negi Girl Kammu

पशु प्रेम।

90 View

#विचार  फूल देई का त्यौहार था,
मैं फिर भी बैठा अकेला था ।
चारों तरफ़ हर्षोल्लास था,
मैं अकेला बैठा निराश था ।
जब मैने चारों तरफ देखा ,
तब पता चला कि
मैं गांव से दूर किसी शहर के भिड़ में
बैठा अकेला उदाश था ।।
✍️ Jagdish Pant

आज फूलदेई के पर्व पर एक कविता मेने लिखि ।

8,145 View

 में थी और शायद तू भी…
शायद एक सांस के फासले पर खड़ा
शायद एक नज़र के अँधेरे पे बैठा
शायद एहसास के एक मोड़ पर चल रहा
पर वह
पुराने-ऐतिहासिक समय की बात है

©Saroj Patwa

#कविता

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