White सरसी/कबीर छन्द
मातु-पिता के चरणों में हैं , अपने सारे धाम ।
उनकी सेवा करने से ही , खुश हो प्रभु श्री राम ।।
नही भ्रमण दुनिया का करना , मातु-पिता जो संग ।
थाम उन्हीं की उँगली देखा, दुनिया के सब ढ़ंग ।।
मातु-पिता ही देव हमारे , करता वंदन नित्य ।
रहूँ शरण मैं हरपल उनकी ,यह ही है औचित्य ।।
मान-लिया वट वृक्ष पिता को, पाता शीतल छाँव ।
यही आसरा मिलता हमको , यह ही सुंदर ठाँव ।।
मातु-पिता का ऋण है कैसा ,कहती जो संतान ।
वही दुष्ट प्राणी है जग में,खोता नित सम्मान ।।
कैसे-कैसे ताने देकर ,पँहुचाते हो ठेस ।
कैसे तुम बिन रात गुजारी , कैसे बदले भेस ।।
आज प्रखर की बातें सुनकर , उठी हृदय में पीर ।
जाकर पहले पोछों उनकी , तुम आँखों से नीर ।।
मातु-पिता का दिल ही होता, गंगा जैसा साफ ।
कितना भी सुत गलती करता, कर देते वह माफ ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
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