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#कविता #manlife #poem  सुबह वह देर तक सोए नहीं।
ऑफिस जाने के लिए कुछ कहे नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

बॉस से कुछ कहे नहीं।
फिजूल खर्ची वह करे नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

महिला के ग़लत व्यवहार पर कुछ कहे नहीं।
कोर्ट में कोई उसका पक्ष सुने नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

थक हार के बस में लेडीज़ से कुछ बोले नहीं।
घर आकर दिन का परिश्रम अपने मन से खोले नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

घर की परेशानियाँ देख वह डगर मगर होए नहीं।
कुछ भी हो, मुख पर अश्व दिखे नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

©Hitesh Ahuja

#Life #manlife #poem

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#Motivational #bibleverse #Chaahat #bible #Psalm

फक्र है मुझे इस बात का की मेरे सपनो को दौलत से नई खरीदा जा सकता ©Renu Kavtya

#कोट्स #renukavtya #poem  फक्र है मुझे इस बात का 
की मेरे सपनो को दौलत से 
नई खरीदा जा सकता

©Renu Kavtya

#renukavtya #Life #poem

13 Love

#Motivational #WoRasta #bible #Psalm
 White Life is like riding a bicycle. To keep your balance, you must keep moving.

©Gracy A

philosophy of life#

90 View

खोए खोए सपनो में ढूंढता हूं अंधेरा रात क्यों अधीर है आता नहीं सबेरा महफिल की नई यात्रा में अब तो शोर का नाम गूंज रहा है बखेरा तपती दुपहरी में प्यास की पंचायत लगी सेहरा में पानी क्यूं नहीं डालती है डेरा आंगन की सोच से हम परे हैं कहां पुरानी खिलौनों का नहीं है बसेरा चहक उठती थी रगों में जो लहू शांत शांत है अब किसका पहरा डर की साया छांव में लेटी है क्यों मन की तृष्णा सोई है शायद गहरा दो बूंद साकी पिलादे शराब मुझे जेहन को सुलगानी है गम जो ठहरा। ©Rishi Ranjan

#sadak #poem  खोए खोए सपनो में ढूंढता हूं अंधेरा
रात क्यों अधीर है आता नहीं सबेरा

महफिल की नई यात्रा में अब तो
शोर का नाम गूंज रहा है बखेरा

तपती दुपहरी में प्यास की पंचायत लगी
सेहरा में पानी क्यूं नहीं डालती है डेरा

आंगन की सोच से हम परे हैं कहां
पुरानी खिलौनों का नहीं है बसेरा

चहक उठती थी रगों में जो लहू
शांत शांत है अब किसका पहरा

डर की साया छांव में लेटी है क्यों
मन की तृष्णा सोई है शायद गहरा

दो बूंद साकी पिलादे शराब मुझे
जेहन को सुलगानी है गम जो ठहरा।

©Rishi Ranjan

#sadak #Life #poem

17 Love

#कविता #manlife #poem  सुबह वह देर तक सोए नहीं।
ऑफिस जाने के लिए कुछ कहे नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

बॉस से कुछ कहे नहीं।
फिजूल खर्ची वह करे नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

महिला के ग़लत व्यवहार पर कुछ कहे नहीं।
कोर्ट में कोई उसका पक्ष सुने नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

थक हार के बस में लेडीज़ से कुछ बोले नहीं।
घर आकर दिन का परिश्रम अपने मन से खोले नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

घर की परेशानियाँ देख वह डगर मगर होए नहीं।
कुछ भी हो, मुख पर अश्व दिखे नहीं।
मर्द क्यों रोंए नहीं।

©Hitesh Ahuja

#Life #manlife #poem

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#Motivational #bibleverse #Chaahat #bible #Psalm

फक्र है मुझे इस बात का की मेरे सपनो को दौलत से नई खरीदा जा सकता ©Renu Kavtya

#कोट्स #renukavtya #poem  फक्र है मुझे इस बात का 
की मेरे सपनो को दौलत से 
नई खरीदा जा सकता

©Renu Kavtya

#renukavtya #Life #poem

13 Love

#Motivational #WoRasta #bible #Psalm
 White Life is like riding a bicycle. To keep your balance, you must keep moving.

©Gracy A

philosophy of life#

90 View

खोए खोए सपनो में ढूंढता हूं अंधेरा रात क्यों अधीर है आता नहीं सबेरा महफिल की नई यात्रा में अब तो शोर का नाम गूंज रहा है बखेरा तपती दुपहरी में प्यास की पंचायत लगी सेहरा में पानी क्यूं नहीं डालती है डेरा आंगन की सोच से हम परे हैं कहां पुरानी खिलौनों का नहीं है बसेरा चहक उठती थी रगों में जो लहू शांत शांत है अब किसका पहरा डर की साया छांव में लेटी है क्यों मन की तृष्णा सोई है शायद गहरा दो बूंद साकी पिलादे शराब मुझे जेहन को सुलगानी है गम जो ठहरा। ©Rishi Ranjan

#sadak #poem  खोए खोए सपनो में ढूंढता हूं अंधेरा
रात क्यों अधीर है आता नहीं सबेरा

महफिल की नई यात्रा में अब तो
शोर का नाम गूंज रहा है बखेरा

तपती दुपहरी में प्यास की पंचायत लगी
सेहरा में पानी क्यूं नहीं डालती है डेरा

आंगन की सोच से हम परे हैं कहां
पुरानी खिलौनों का नहीं है बसेरा

चहक उठती थी रगों में जो लहू
शांत शांत है अब किसका पहरा

डर की साया छांव में लेटी है क्यों
मन की तृष्णा सोई है शायद गहरा

दो बूंद साकी पिलादे शराब मुझे
जेहन को सुलगानी है गम जो ठहरा।

©Rishi Ranjan

#sadak #Life #poem

17 Love

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