मां तुमसे बहुतेरे बात कहने थे,
मेरी इस जिंदगी के कुछ हालत समझने थे।
मां कई बार कहना चाहा, पर संकूचित सा हो उठता हूं,
लोक समाज के डर से कुंठित सा जान पड़ता हूं,
पर मां इनके अलावा सारी बातें तो बेबाक सा के जाता हूं,
पता नहीं क्यों इस वाकया पर कुछ भी कहने से घबराता हूं,
कहने को तो बहुत कुछ है मां,पर शिथिल सा हो जाता हूं।
मां तुमसे बहुतेरे बात कहने थे,
मेरी इस जिंदगी के कुछ हालत समझने थे।
हालात कुछ ऐसे हो चुके हैं, पर अब कुछ कहा नहीं जा रहा,
हाल दो टूक कलेजे का कुछ बिना कहे भी रहा नहीं जा रहा,
दुविधा में हूं कुछ, क्या करे या न करे ये भी कुछ सूझ नहीं रहा,
मां तुमसे बहुतेरे बात कहने थे,
मेरी इस जिंदगी के कुछ हालत समझने थे।
अंदर ही अंदर कुछ टूट सा रहा हूं,
बहुत ही हिम्मत से खुद को समेट रहा हूं,
कुछ बचा है, कुछ खुद से सहेज रहा हूं,
डर तो है, कहीं कभी खुद से फिसल रहा हूं।
मां तुमसे बहुतेरे बात कहने थे,
मेरी इस जिंदगी के कुछ हालत समझने थे।
थोड़ी सी हिम्मत है, थोड़ी और दे देना,
बिना कुछ कहे भी मेरी सारी बातें जान लेना,
जैसे बचपन में थमा था, एक बार और थाम लेना,
कुछ भी हो,जैसा भी हूं तुम्हारा ही हूं, बस अपना मान लेना।
©lannisterabhi
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