फितूर था, तो उड़ना सीख गए,
गुलाब पर बैठना, उसे चुनना सीख गए,
एक तूफ़ान उजाड़ गया सारा बगीचा,
हम रातों-रात कांटों पर चलना सीख गए।
बेफ़िक्री में, हम रातों को गश्त लगाया करते,
हवाओं से बातें करते, आसमानों में झूला करते,
एक अंधेरा, मेरे घर की रोशनी चुरा ले गया,
हम रातों को आंखों पर पहरा देना सीख गए।
नीर को सागर में खेलते देखा है,
दरिया में नांव को टहलते देखा है,
ये हाशिए की रेत कब रेगिस्तान में बदल जायेगी,
मेरी प्यासी निगाह ने रेत को निचोड़ के देखा है।
©सम्राठ
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