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New मारेगी मरजानी वह बंदूक बनके Status, Photo, Video

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#तू      तू आंखों में ख्वाब बन के रह 
तू जहन में याद बन के रह

मेरी जिंदगी के हर सवालो का 
तू जबाब बन के रह_

कुछ ज्यादा नहीं है ख्वाहिश 
तुझसे इश्क में ऐ मेरे हमदम 

जब तक जिंदा हूं तब तक 
तू मुझमे सांस बन के रह..!

🌿🌺❤️🌺🌿

©Khan Sahab

#तू मेरी आंखों में ख्वाब बनके रह

108 View

#स्वप्न #कविता  स्वप्न वह 
सुरमई सा 
अधखुली पलकों का 
दूर कहीं अंबर के उस पार 
मुस्काया था एक चाँद 
जैसे घुँघरू बंध गए हों 
दिशाओं के। 
लाज खींच गई थी
पूरब की कनपटियों तक। 
उस सिंदूरी अंबर में 
दौड़ता मेरा स्वप्न 
तारों की झुरमुट से 
करता सरगोशियाँ 
कभी निहारिकाओं के संग 
खिलखिलाता 
खींचता चाँदनी को 
अपनी अंजुरी में 
कभी सांसों में भरता
रजनीगंधा की भीनी सी महक। 
टोहता कभी 
भोर की किरण को 
फिर रश्मियों के संग 
खुलता मेरे अन्तर में 
रेशमी गाँठ की तरह। 
साँझ के ढलते ही 
खींच कर लाता 
चांँद को बालकनी के बीच 
और फिर वहीं 
टिका देता अधर में स्थिर! 
तब निहारता मन मुग्ध नयन  
सम्मुख मेरे 
मेरा स्वप्न  वह …..!

©Dr Usha Kiran

#स्वप्न वह

117 View

#Bhakti

तेरा ही साया बनके तेरे साथ चला मैं

117 View

तूफ़ान बनके आया बंगाल में कहर, दिखता है तबाही में रीमाल का असर, उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़, कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर, विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार, आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर, लू की चपेट लील गई हैं कई जानें, यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर, हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, सुनसान पड़ी सड़कें गमगीन दोपहर, गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, गर्दिश भरी रातों का होता नहीं सहर, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ•प्र• ©Shashi Bhushan Mishra

#तूफ़ान #कविता  तूफ़ान  बनके  आया  बंगाल में कहर, 
दिखता है तबाही में रीमाल का असर,

उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़,
कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर,

विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार,
आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, 

गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, 
मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर,

लू की  चपेट  लील  गई  हैं कई  जानें,
यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर,

हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, 
सुनसान पड़ी  सड़कें  गमगीन दोपहर,

गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, 
गर्दिश भरी  रातों का  होता नहीं सहर,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
              प्रयागराज उ•प्र•

©Shashi Bhushan Mishra

#तूफ़ान बनके आया#

15 Love

White सौंधी सी खुशबू, मीठी सी बातें! आंचल में खुशियां थी खिलती जहाँ पे ! सहिष्णुता की परिभाषा वह निकिता लौट आता हूं फिर मैं जहाँ पे! था कार्तिक माह ,अष्टसप्तति संवत् मेरा जीवन था बड़ा ही विदम्बत जब हृदयचक्षु से देखा उसको ये हृदय वही था अवसंवत .. वह नैन नक्श की माया सी मैं उसके मोह में दास सा हूं वह श्रीकृष्ण की गाय सी थी मैं चरवाहे की 'घास' सा हूं हूँ बिना छुए उसे प्रेम में मैं उस सम्मोहन ने साधा है वह प्रेम काम में शामिल हैं, मेरी प्रेम-काम ही बाधा है एक दिन उसको बतलाना है, क्या रत्न सा उसने खोया है पर सत्य प्रिय एक बात ही है यह हृदय बहुत ही रोया है यह हृदय बहुत ही रोया है ©Mahi Dixit

#कविता  White सौंधी सी खुशबू, मीठी सी बातें!
आंचल में खुशियां थी खिलती जहाँ पे !
 सहिष्णुता की परिभाषा वह निकिता
 लौट आता हूं फिर मैं जहाँ पे!

था कार्तिक माह ,अष्टसप्तति संवत् 
मेरा जीवन था बड़ा ही विदम्बत
 जब हृदयचक्षु से देखा उसको
 ये हृदय वही था अवसंवत ..

वह नैन नक्श की माया सी 
मैं उसके मोह में दास सा हूं 
 वह श्रीकृष्ण की गाय सी थी
 मैं चरवाहे की 'घास' सा हूं

हूँ बिना छुए उसे प्रेम में मैं 
उस सम्मोहन ने साधा है 
वह प्रेम काम में शामिल हैं, 
मेरी प्रेम-काम ही बाधा है

एक दिन उसको बतलाना है,
 क्या रत्न सा उसने खोया है
 पर सत्य प्रिय एक बात ही है 
 यह हृदय बहुत ही रोया है
यह हृदय बहुत ही रोया है

©Mahi Dixit

वह निकिता

7 Love

#लव #वह  आज कल वह अनजान बन बैठा,
मैं जानता था कि यह वक्त आएगा।
जो साथ रहने का वादा किए। 
वह भी एक न एक दिन साथ छोड़ चले जायेंगे। 
लेकिन पता नहीं था इतनी जल्दी आएंगा।
वह धीरे-धीरे चांद बदलो में छुपता जा रहा है।
और आसुओं के कर्ण से धीरे धीरे धरती को 
एक और कहानी को धोने की बात कर रही है।

©मुसाफिर

#वह

135 View

#तू      तू आंखों में ख्वाब बन के रह 
तू जहन में याद बन के रह

मेरी जिंदगी के हर सवालो का 
तू जबाब बन के रह_

कुछ ज्यादा नहीं है ख्वाहिश 
तुझसे इश्क में ऐ मेरे हमदम 

जब तक जिंदा हूं तब तक 
तू मुझमे सांस बन के रह..!

🌿🌺❤️🌺🌿

©Khan Sahab

#तू मेरी आंखों में ख्वाब बनके रह

108 View

#स्वप्न #कविता  स्वप्न वह 
सुरमई सा 
अधखुली पलकों का 
दूर कहीं अंबर के उस पार 
मुस्काया था एक चाँद 
जैसे घुँघरू बंध गए हों 
दिशाओं के। 
लाज खींच गई थी
पूरब की कनपटियों तक। 
उस सिंदूरी अंबर में 
दौड़ता मेरा स्वप्न 
तारों की झुरमुट से 
करता सरगोशियाँ 
कभी निहारिकाओं के संग 
खिलखिलाता 
खींचता चाँदनी को 
अपनी अंजुरी में 
कभी सांसों में भरता
रजनीगंधा की भीनी सी महक। 
टोहता कभी 
भोर की किरण को 
फिर रश्मियों के संग 
खुलता मेरे अन्तर में 
रेशमी गाँठ की तरह। 
साँझ के ढलते ही 
खींच कर लाता 
चांँद को बालकनी के बीच 
और फिर वहीं 
टिका देता अधर में स्थिर! 
तब निहारता मन मुग्ध नयन  
सम्मुख मेरे 
मेरा स्वप्न  वह …..!

©Dr Usha Kiran

#स्वप्न वह

117 View

#Bhakti

तेरा ही साया बनके तेरे साथ चला मैं

117 View

तूफ़ान बनके आया बंगाल में कहर, दिखता है तबाही में रीमाल का असर, उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़, कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर, विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार, आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर, लू की चपेट लील गई हैं कई जानें, यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर, हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, सुनसान पड़ी सड़कें गमगीन दोपहर, गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, गर्दिश भरी रातों का होता नहीं सहर, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ•प्र• ©Shashi Bhushan Mishra

#तूफ़ान #कविता  तूफ़ान  बनके  आया  बंगाल में कहर, 
दिखता है तबाही में रीमाल का असर,

उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़,
कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर,

विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार,
आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, 

गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, 
मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर,

लू की  चपेट  लील  गई  हैं कई  जानें,
यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर,

हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, 
सुनसान पड़ी  सड़कें  गमगीन दोपहर,

गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, 
गर्दिश भरी  रातों का  होता नहीं सहर,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
              प्रयागराज उ•प्र•

©Shashi Bhushan Mishra

#तूफ़ान बनके आया#

15 Love

White सौंधी सी खुशबू, मीठी सी बातें! आंचल में खुशियां थी खिलती जहाँ पे ! सहिष्णुता की परिभाषा वह निकिता लौट आता हूं फिर मैं जहाँ पे! था कार्तिक माह ,अष्टसप्तति संवत् मेरा जीवन था बड़ा ही विदम्बत जब हृदयचक्षु से देखा उसको ये हृदय वही था अवसंवत .. वह नैन नक्श की माया सी मैं उसके मोह में दास सा हूं वह श्रीकृष्ण की गाय सी थी मैं चरवाहे की 'घास' सा हूं हूँ बिना छुए उसे प्रेम में मैं उस सम्मोहन ने साधा है वह प्रेम काम में शामिल हैं, मेरी प्रेम-काम ही बाधा है एक दिन उसको बतलाना है, क्या रत्न सा उसने खोया है पर सत्य प्रिय एक बात ही है यह हृदय बहुत ही रोया है यह हृदय बहुत ही रोया है ©Mahi Dixit

#कविता  White सौंधी सी खुशबू, मीठी सी बातें!
आंचल में खुशियां थी खिलती जहाँ पे !
 सहिष्णुता की परिभाषा वह निकिता
 लौट आता हूं फिर मैं जहाँ पे!

था कार्तिक माह ,अष्टसप्तति संवत् 
मेरा जीवन था बड़ा ही विदम्बत
 जब हृदयचक्षु से देखा उसको
 ये हृदय वही था अवसंवत ..

वह नैन नक्श की माया सी 
मैं उसके मोह में दास सा हूं 
 वह श्रीकृष्ण की गाय सी थी
 मैं चरवाहे की 'घास' सा हूं

हूँ बिना छुए उसे प्रेम में मैं 
उस सम्मोहन ने साधा है 
वह प्रेम काम में शामिल हैं, 
मेरी प्रेम-काम ही बाधा है

एक दिन उसको बतलाना है,
 क्या रत्न सा उसने खोया है
 पर सत्य प्रिय एक बात ही है 
 यह हृदय बहुत ही रोया है
यह हृदय बहुत ही रोया है

©Mahi Dixit

वह निकिता

7 Love

#लव #वह  आज कल वह अनजान बन बैठा,
मैं जानता था कि यह वक्त आएगा।
जो साथ रहने का वादा किए। 
वह भी एक न एक दिन साथ छोड़ चले जायेंगे। 
लेकिन पता नहीं था इतनी जल्दी आएंगा।
वह धीरे-धीरे चांद बदलो में छुपता जा रहा है।
और आसुओं के कर्ण से धीरे धीरे धरती को 
एक और कहानी को धोने की बात कर रही है।

©मुसाफिर

#वह

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