Blue Moon ग़ज़ल
रिश्ता गया था टूट,फिर से जोड़ना पड़ा।
धागा उलझ गया था,तो वो तोड़ना पड़ा।
मेरी समझ न आया लोगों का कुछ मिजाज़।
तो खुद का रास्ता ही मुझे मोड़ना पड़ा।
अकेली थी मैं और आगे काफिले मिले।
सभी निकले दगाबाज उनको छोड़ना पड़ा।
जो सोचा नहीं कभी,वही हर बार हुआ है।
सबकी पसंद से ही खुद को जोड़ना पड़ा।
चाहा जो जिंदगी में,वो मिला कभी नहीं।
ना चाहते हुए भी दिल को तोड़ना पड़ा।
जब झुक गई हर बार मैं रिश्तों के नाम पर।
तो अपनी ख्वाहिशों को मुझे छोड़ना पड़ा।
©Dr Nutan Sharma Naval
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